माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता , Makhanlal Chaturvedi kee patrakarita , Journalism of Makhanlal Chaturvedi

       बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अनेक महापुरुषों ने राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपने बहुआयामी व्यक्तित्व और कालजयी कृतित्व की छाप छोड़ी है। अपने साहित्यिक और पत्रकारीय कृतित्व के कारण जनमानस माखनलाल चतुर्वेदी का नाम बड़े आदरपूर्वक लिया जाता हैवे सुधी चिंतक, सुकवि और प्रखर पत्रकार होने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम के सेनापतियों में से एक थे। उनकी मुकम्मल पहचान 'एक भारतीय आत्मा' के रूप में है, जो सर्वथा सटीक बैठती है।

       पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता एक आंदोलनकारी पत्रकारिता के रूप में थी। सर्कुलेशन बढ़ाने, विज्ञापन छापने तथा धनोपार्जन के लिए पत्रकारिता धर्म से समझौता न करना उनकी प्रवृत्ति थी। माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता में सामाजिक न्याय एवं समरसता विद्यमान है। उनकी रचनाधर्मिता राष्ट्रवादी पत्रकारिता को बल देती है, माखनलाल चतुर्वेदी हिंदी के ऐसे विरल योद्धा पत्रकार और साहित्यकार थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अनेकों बार जेल गए।  स्वाधीनता के पूर्व उन्होंने अपनी कलम और वाणी से पूरे युग को अनुप्राणित किया तो स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण के लिए प्रेरित करते रहे। उनके चरित्र और आचरण में कोई द्वैत नहीं था। 'कर्मवीर' के माध्यम से माखनलालजी ने जिन बलिपंथी मूल्य आधारित पत्रकारिता के मानक गढ़े वे भारतीय पत्रकारिता की अनमोल विरासत हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था और मृत्यु 30 जनवरी 1968  को हुई थी। इनके पिता का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी था, जो गाँव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। चतुर्वेदी की  प्राइमरी शिक्षा के बाद घर पर ही इन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त किया और अध्यापक की नौकरी कर ली परंतु किसी कारणवश् सितंबर 1919 में ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका 'प्रभा' का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा दिया। इस तरह माखनलाल चतुर्वेदी का पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश हुआ।

       कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने भी 'प्रताप' का संपादन-प्रकाशन भी इसी वर्ष 1919 आरंभ किया।  यह वो समय था, जब भारतीय जनमानस में आजाद होने की तमन्ना गहरे तक पैठ चुकी थी। लोकमान्य तिलक का उद्घोष- 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' बलिपंथियों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केंद्र में आगमन हो चुका था।
       माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी पत्रकारिता से ब्रिटिशराज की जड़ें हिला दी थीं। माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने दमदार भाषणों और सरल भाषा के जरिेए आजादी के लिए युवाओं में एक नया जोश भरा और नई पीढी का आह्वान करते हुए कहा कि, वो गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आएं। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा।  इसकी नींव बहुत पहले पड़ चुकी थी। जब माधवराव सप्रे ने 'हिन्दी केसरी' के लिए सन्‌ 1908 में 'राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार' विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। इसमें खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। सप्रेजी को माखनलाल चतुर्वेदी की लेखनी में अपार संभावनाओं से युक्त पत्रकार-साहित्यकार के दर्शन हुए। उन्होंने माखनलालजी को इस दिशा में प्रवृत्त होने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि, 'मुझे मध्यप्रदेश के लिये एक बलि की जरूरत है, अनेक तरूण मुझे निराश कर चुके हैं, अब मैं तुम्हारी बरबादी पर उतारू हूं। माखनलाल, तुम मुझे वचन दो कि अपना समस्त जीवन मध्यप्रदेश की उन्नति में लगा दोगे।' सप्रेजी को अश्वस्त करते हुए माखनलाल जी ने कहा— 'यदि प्रांत के लिये मेरा उपयोग्रकाश किया जा सकता है तो मैं आपके दरवाजे पर नौछावर हूं', और इसके माध्यम से अनेक लेखकों और कवियों को साहित्य की राष्ट्रवादी धारा को जोडा। उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता की भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए लिखा—
मुझे तोड़ लेना वन माली, उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।।

       'कर्मवीर' के 25 सितंबर 1925 के अंक में माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा- 'उसे नहीं मालूम कि धनिक तब तक जिंदा है, राज्य तब तक कायम है, ये सारी कौंसिलें तब तक हैं, जब तक वह अनाज उपजाता है और मालगुजारी देता है। जिस दिन वह इंकार कर दे उस दिन समस्त संसार में महाप्रलय मच जाएगा। उसे नहीं मालूम कि संसार का ज्ञान, संसार के अधिकार और संसार की ताकत उससे किसने छीन कर रखी है और क्यों छीन कर रखी है। वह नहीं जानता कि जिस दिन वह अज्ञान इंकार कर उठेगा उस दिन ज्ञान के ठेकेदार स्कूल फिसल पड़ेंगे, कॉलेज नष्ट हो जाएँगे और जिस दिन उसका खून चूसने के लिए न होगा, उस दिन देश में यह उजाला, यह चहल-पहल, यह कोलाहल न होगा।

       साहित्य में अभूतपूर्व योगदान के लिए 1943 में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा 'देव पुरस्कार' माखनलालजी को 'हिम किरीटिनी' पर दिया गया था। 1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को 'हिमतरंगिनी' के लिए प्रदान किया गया। हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिणी, युग चरण, समर्पण, मरण ज्वार, माता, वेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी काजल आँज रही आदि इनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं। कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि इनके प्रसिद्ध गद्यात्मक कृतियाँ हैं। 'पुष्प की अभिलाषा' और 'अमर राष्ट्र' जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। 1963 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से अलंकृत किया। साथ ही पत्रकारिता में योगदान फलस्वरूप भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। जो एशिया का प्रथम पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय है।
कपिल देव प्रजापति

Kapil Dev Prajapati

PhD in Journalism UGC-NET, M.Phil. in Mass Communication, MJC (Master in Journalism & and Communication), M.A.(Hindi Literature)

1 Comments

  1. दादा को ह्रदय की अंनत गहराइयों से वंदन!!!
    👌👌👌👌👌👌👌

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