पिछले कुछ दिनों से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसे व्यक्त्तिवों फिल्में बनाई जा रही हैं जो अपनेे जमाने के यदि फिल्मी भाषा में कहें तो खलनायक थे। फिल्मकारों ने उन्हें अपनी फिल्मों में नायक के रूप में पेष करना आरंभ कर दिया है। हद तो तब हो जाती है, जब पब्लिक इन फिल्मों को देखने टॉकीजों और मल्टीप्लेक्सों में पट पड़ती है और फिल्मकारों अनुमान से ज्यादा कमाई कर जाते है। भारतीय चूंकि है कि नकलची, दूसरे की देखा सीखी करने में माहिर! दूसरे फिल्मकार भी अपने समय में खलनायक की जिंदगी जीने वाले को तलाश करने लगते हैं और उनकों ढेरों ऐसे व्यक्तित्व मिल जाते हैं। बॉलीवुड में कई फिल्में अंडरवर्ल्ड डॉन और गैंगस्टर्स के जीवन पर बनाई जा चुकी हैं। इस तरह के विषय पर बनने वाली फिल्में दर्शकों के बीच खूब पसंद की जाती हैं और हिट भी रहती हैं।
हाल ही में प्रख्यात फिल्मकार राजकुमार हिरानी के द्वारा फिल्म अभिनेता संजय दत्त की निजी जिंदगी पर संजू नाम की फिल्म बनाई जिसने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के परचम लहराते हुए 2018 की अभी तक की सर्वाधिक कमाई वाली फिल्म का रिकार्ड अपनेनाम कर लिया है, यह ग्राफ दिन-व-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी तरह 2017 में रहीस फिल्म आई थी जो गुजरात के एक तस्कर से प्रेरित है की तस्करी करनेवाले, रईस आलम के जीवन पर अधारित थी। यह साल की दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। इससे पहले अनेक फिल्मकारों ने अंडरवर्ल्ड और माफियाओं के जीवन पर फिल्में बनाई हैं जिससे फिल्माकारों की खूब कमाई हुई।
यदि बात करें तो 2013 मे दो फिल्में अंडरवर्लड माफिया दाऊद पर बनीं एक, ’वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई अगेन’ इसमें अक्षय कुमार ने दाऊद का किरदार निभाया था। दूसरी ’डी डे’ जिसमें दाऊद का किरदार ऋषि कपूर ने निभाया था। दोनों फिल्मों की दर्शकों ने काफी तारीफ की थी। इसी साल ’शूटआउट एट वडाला’ निर्देशक संजय गुप्ता ने मुंबई के गैंगस्टर मान्या सुर्वे के जीवन पर आधारित यह फिल्म बनाई थी। फिल्म में मान्या का किरदार जॉन अब्राहम ने निभाया था। माना जाता है कि, मान्या सुर्वे प्रकरण मुंबई पुलिस का पहला दर्ज एनकाउंटर था। 2010 में ’वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ आई। जिसे मिलन लूथारिया और एकता कपूर द्वारा निर्देशित किया गया। फिल्म में मुख्य कलाकार अजय देवगन, इमरान हाशमी और प्राची देसाई थीं। 2005 में फिर राम गोपाल वर्मा ने दाऊद इब्राहिम पर डी’ फिल्म बनाई इसमें के दाऊद का किरदार में रणदीप हुड्डा ने निभाया, यह फिल्म भी काफी चर्चा में रही। 2002 में फिल्मकार रामÛोपाल वर्मा ने ’कंपनी’ नाम की बनाई जो दाउद इब्राहिम की जिंदगी पर आधारित थी। फिल्म में दाउद का किरदार अजय देवगन ने निभाया। इसमें दाऊद और छोटा राजन के बीच के रिश्तों को दिखाया गया था।
अब प्रश्न यहां यह उठता है कि फिल्मकार ऐसीं फिल्में बनाकर खराब व्यकितत्व वाले इंसान की छवि को धोने की प्रयास क्यों कर रहे हैं? क्या इन किरदारों में ऐसी खूबियां हैं जिन्हें बड़े पर्दे पर आदर्श के रूप में परोसा जाए. जिसमें युवाओं को लिए सीखने को बहुत कुछ है? क्या खलनायक ही आज के युवाओं के नायक है? यदि इस तरह कि फिल्मों के बनाने के लिए फिल्मकारों को दोष देने पर उनका कहना होता है कि फिल्म बनाने कई करोड़ रूपये खर्च होते हैं हमें वहीं दिखाना होता है जैसा वह पब्लिक देखना सुनना पसंद करती है, कोई भी धंधा घाटे में नहीं होता है। परंतु दंगल और बजरंगी भाईजान जैसी फिल्मों की सार्थकता उनके कथन को फीका कर देती हैं। इसलिए यहां आवश्यकता है कि आम जनता खासतौर से युवा अपनी सोच को बदलें असली नायक हैं उनके फिल्मों को सहारे।
कपिल देव प्रजापति
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